Oración escrita por Goswami Tulsidas
Shri Ramachandra Kripalu , o "Shri Ram Stuti", es un verso Stuti (Oda de la hora) de su obra llamada Vinaya Patrika , escrita por Goswami Tulsidas . Fue escrita en el siglo XVI en una mezcla de sánscrito y awadhi . La oración/oda glorifica a Shri Rāma y sus características al máximo.
Versión original:
MEZCLA de Awadhi y Sánscrito :
॥ श्रीरामचन्द्र कृपालु ॥
- श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं ।
- नव कञ्ज लोचन कञ्ज मुख कर कञ्ज पद कञ्जारुणं ॥१॥
- कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं ।
- पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥ २॥
- भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।
- रघुनन्द आनन्द कन्द कोसल चंद्र दशरथ नन्दनं ॥३॥
- सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदार अङ्ग विभूषणं ।
- आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥
- इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।
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- मनु जाहि राचेयु मिलहि सो वरु सहज सुन्दर सांवरो ।
- करुणा निधान सुजान शीलु स्नेह जानत रावरो ॥६॥
- एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली ।
- तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर च ली ॥७॥
॥सोरठा॥
जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे।
||चौपाई||
मो सम दीन न दीन-हित, तुम समान रघुवीर । अस विचार रघुवंश मणि, हरहु विषम भव वीर ।।
कामिही नारि पियारी जिमि, लोभिहि प्रिय जिमि दाम । तिमि रघुनाथ निरंतरय, प्रिय लागेहू मोहि राम ।।
अर्थ न धर्म न काम रुचि, गति न चाहु निर्वाण । जन्म जन्म रचि राम पद, यह वरदान न आन ।।
विनती कर मोहि मुनि नार सिर, कहीं-करी जोर बहोर । चरण सरोरहु नाथ जिमी, कबहु बजई भाति मोर ।।
श्रवण सुजस सुनि आयहु, प्रभु भंजन भव वीर । त्राहि-त्राहि आरत हरण शरण सुखद रघुवीर ।।
जिन पायन के पादुका, भरत रहे मन लाई । तेहीं पद आग विलोकि हऊ, इन नैनन अब जाहि ।।
काह कही छवि आपकी, मेल विरजेऊ नाथ । तुलसी मस्तक तव नवे, धनुष बाण ल्यो हाथ ।।
कृत मुरली कृत चंद्रिका, कृत गोपियन के संग । अपने जन के कारण, कृष्ण भय रघुनाथ ।।
लाल देह लाली लसे, अरू धरि लाल लंगूर । बज्र देह दानव दलन, जय जय कपि सूर ।।
जय जय राजा राम की, जय लक्ष्मण बलवान ।
जय कपीस सुग्रीव की, जय अंगद हनुमान ।।
जय जय कागभुसुंडि की, जय गिरी उमा महेश । जय ऋषि भारद्वाज की, जय तुलसी अवधेश ।।
बेनी सी पावन परम, देमी सी फल चारु । स्वर्ग रसेनी हरि कथा, पाप निवारण हार ।।
राम नगरिया राम की, बसे गंग के तीर । अटल राज महाराज की, चौकी हनुमान वीर ।।
राम नाम के लेत ही, सकल पाप कट जाए । जैसे रवि के उदय से, अंधकार मिट जाए ।।
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ।।
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । कहत अयोध्या दास तवे देहु अभेय वरदान ।।
नहीं विद्या नहीं बाहुबल, नहीं कंचन कों धाम । मो सों पतित अपंग की, तुम पति राखहुँ राम ।।
एक धरी आधी धरी, और आधि की आधि । तुलसी संगत साधु की, हारई कोटि अपराध ।।
सियावर रामचन्द्र जी की जय ।
Transliteración :
॥ Shriramachandra Kripalu॥
- Śrīrāmacandra kr̥pālu bhajumana haraṇabhavabhayadāruṇaṁ.
- Navakañjalocana kañjamukha karakañja padakañjāruṇaṁ. ।।1।।
- Kandarpa agaṇita amita chavi navanīlanīradasundaraṁ.
- Paṭapītamānahu taḍita ruciśuci naumijanakasutāvaraṁ. ।।2।।
- Bhajadīnabandhu dinēśa dānavadaityavaṁśanikandanaṁ.
- Raghunanda ānandakanda kośalachandra daśarathanandanaṁ. ।।3।।
- Śiramukuṭakuṇḍala tilakacāru udāru'aṅgavibhūṣaṇaṁ.
- Ājānubhuja śaracāpadhara saṅgrāmajitakharadūṣaṇaṁ. 4 । ।
- Iti vadati tulasīdāsa śaṅkaraśeṣamunimanarañjanaṁ.
- Mama hrudayakañjanivāsakuru kāmādikhaladalagañjanaṁ. 5 । ।
Traducción al hindi :
- हे मन कृपालु श्रीरामचन्द्रजी का भजन कर । वे संसार के जन्म-मरण रूपी दारुण भय को दूर करने व ाले हैं ।
- उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान हैं । मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥
- उनके सौन्दर्य की छ्टा अगणित कामदेवोँ है । उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर ्ण है ।
- पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रह ा है । ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मैं नमस्का र करता हूँ ॥२॥
- हे मन दीनों के बन्धु, सूर्य के समान तेजस्वी, व और दैत्यों के वंश का समूल नाश करने वाले,
- आनन्दकन्द कोशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चन्द् रमा के समान दशरथनन्दन श्रीराम का भजन कर ॥३॥
- जिनके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट, कानों में कुण् डल भाल पर तिलक, और प्रत्येक अंग मे सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं ।
- जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं । जो धनुष-बाण लिये हुए हैं, जिन्होनें संग्राम मे ं खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥
- जो शिव, शेष और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाल े और काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं का नाश करने Por supuesto,
- तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि वे श्रीरघुनाथ जी मेरे हृदय कमल में सदा निवास करें ॥५॥
- जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभ ाव से सुन्दर साँवला वर (श्रीरामचन्द्रजी) तुमको मिलेगा।
- वह जो दया का खजाना और सुजान (सर्वज्ञ) है, े शील और स्नेह को जानता है ॥६॥
- इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकी जी समेत सभी सखियाँ हृदय मे हर्षित हुईं।
- तुलसीदासजी कहते हैं, भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चलीं ॥७॥
- ॥सोरठा॥
- गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय में जो ह र्ष हुआ वह कहा नही जा सकता। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बाँये अंग फड़कने लगे ॥
Traducción al español :
- Oh Mente, adora al misericordioso Shri Ramchandra. Él es quien eliminará de este mundo el terrible temor al nacimiento y a la muerte.
- Sus ojos son como lotos recién florecidos. Su rostro es como un loto, sus manos son como un loto y sus pies son como un loto rojo. ॥1॥
- El resplandor de su belleza es mayor que el de innumerables Kaamdevs. Su cuerpo tiene una tez hermosa como la de una nueva nube azul y húmeda. La túnica amarilla que cubre su cuerpo parece brillar como un relámpago.
- Adoro esa forma sagrada de Shri Ram, que es el esposo de la hija de Janaki (Shri Sita). ॥2॥
- Oh mente, adora al Señor Rama, quien es amigo de los pobres, quien es tan brillante como el sol, quien es destructor de los descendientes de demonios y monstruos.
- Él es la fuente del deleite del linaje Raghu, una nube de felicidad, la luna en el cielo del país de Kosala (Ayodhya) y el hijo de Dasharatha. ॥3॥
- Sobre su cabeza lleva una corona de joyas; pendientes en sus orejas; una marca de tilak (marca carmesí) en su frente; y cada parte de su cuerpo está adornada con hermosos ornamentos.
- Sus brazos son largos hasta las rodillas. Lleva un arco y una flecha. Derrotó a Khar-Dushana en la batalla. ॥4॥
- Así, Tulsidas dice: Oh Señor Rama, que complaces las mentes de Shiva, Sheshnag y los sabios,
- Que siempre residas en el loto de mi corazón y destruyas enemigos como la lujuria, la ira, la codicia, etc. ॥5॥
Véase también
En la cultura popular
Esta canción es cantada por muchos cantantes indios como Lata Mangeshkar , [1] Anup Jalota . [2] y Jagjit Singh Ji también.
Referencias
- ^ "Shri Ram Chandra Kripalu - Lata Mangeshkar".
- ^ "Shri Ram Chandra Kripalu - Anup Jalota".
- https://www.youtube.com/watch?v=MyNSOu-Fl-k Sooryagayathri
- http://gaana.com/song/shree-ram-chandra-kripalu-bhajman-5 Anup Jalota-Ganna
- https://chalisasangrah.in/Stuti/Ram-Stuti Letras de Ram Stuti